आखिर क्यों दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड?

ram-laxman-542a904f406fa_exlst-1.jpg
रामायण में एक घटना का वर्णन आता है की श्री राम को न चाहते हुए भी जान से प्यारे अपने अनुज लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ता है। आइये जानते है, आखिर क्यों भगवान राम को लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा?

ये घटना उस वक़्त की है जब श्री राम लंका विजय करके अयोध्या लौट आते है और अयोध्या के राजा बन जाते है। एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने श्री राम के पास आते है। चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व वो भगवान राम से कहते है की आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हो। मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा। भगवान राम, यम को वचन दे देते है।

राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते है की जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते है।

लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतता है वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है। जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही।

लक्ष्मण समझ गए कि ये एक विकट स्थिति है जिसमें या तो उन्हे रामाज्ञा का उल्लङ्घन करना होगा या फिर सम्पूर्ण नगर को ऋषि के श्राप की अग्नि में झोेंकना होगा। लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगर वासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें। उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।

राम भगवान ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आव-भगत की। परन्तु अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना था। वो समझ नहीं पा रहे थे की वो अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दे, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था।
इस दुविधा की स्तिथि में श्री राम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरदेव ने कहा की अपने किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है।  अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो।

लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है की मैं आपके वचन की पालना करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधी ले ली।

लंका में हनुमान जी का विभीषण से भेट

hanuman-with--vibhishana.jpg

जब हनुमान समुद्र पार करके सीता माता को खोजने के लिए लंका पहुँचे तब वे रावण के छोटे भाई विभीषण के पास गए। विभीषण ने हनुमान जी से एक छोटा-सा प्रश्न किया कि “प्रिय हनुमान, क्या श्रीराम मेरे ऊपर कृपादृष्टि बनायेंगे? रावण मेरे भ्राता हैं, क्या यह जानते हुए भी वो इस संसार से मुझे मुक्ति दिलायेंगे?

 

यह सुनते ही हनुमान जी बोल पड़े:- विभीषण महाराज, आप संशय क्यों कर रहे हैं…. जब मुझ जैसे वानर कुल में पैदा हुए एक वानर को उन्होंने शरण दे दी , अपना दास स्वीकार कर लिया तब भला वे आपको क्यों नहीं अपनाएंगे, आप तो एक इंसान हैं, और आपके अंदर इतनी अच्छाइयां छिपी है, वो जरूर आपकी सहायता करेंगे।

इस प्रकार हनुमान जी ने ही अपनी भक्ति से विभीषण के मन में भी अटूट विश्वास पैदा कर दिया जिस कारण ही विभीषण, श्रीराम का साथ देने को पूर्ण रूप से तैयार हो गए।

हनुमान जी के अंदर प्रभु श्री राम का वास

HANUMANJI-hd-images.jpg

एक बार माता सीता ने हनुमान जी से प्रसन्न होकर उन्हें हीरों का एक हार दिया, और बाकी सेवकों को भी उन्होंने कुछ भेट में दिए।

जब हनुमान जी ने हार को अपने हाथ में लिया तब उन्होंने प्रत्येक हीरे को माला से अलग कर दिया और उन्हें चबा-चबाकर जमीन पर फेंकने लगे। यह देख माता सीता को क्रोध आ गया और वे बोलीं-“ अरे हनुमान! ये आप क्या कर रहे हैं? आपने इतना मूलयवान हार नोंच-खसोटकर नष्ट कर दिया।” यह सुनकर अश्रुपूरित नेत्रों से हनुमान जी बोले- “माते! मैं तो केवल इन रत्नों को खोलकर यह देखना चाहता था कि इनमे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम और माँ सीता बसते हैं अथवा नहीं! आप दोनों के बिना इन पत्थरों का मेरे लिए क्या मोल ?

बाकी सेवक यह सारी घटना देख रहे थे, वे तुरंत ही हनुमान जी के पास आकर बोले- कि हनुमान यदि इन निर्जीव वस्तु में श्रीराम नहीं हैं तो श्रीराम कहाँ है?

प्रभु श्रीराम तो मेरे ह्रदय में बसते हैं, इतना कहकर उन्होंने अपनी छाती चीर डाली और माता सीता सहित सभी सेवकों को हनुमान जी के ह्रदय में श्रीराम जी के दर्शन हुए।

चार मोमबत्तियां

Advent-candles-sm_thumb4

रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।

पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती। …” और ऐसा कहते हुए, कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।

दूसरी मोमबत्ती बोली , “मैं विश्वास हूँ , और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है, मैं भी यहाँ से जा रही हूँ …” और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , “मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं, मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

 

वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।

मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला ,
“अरे, तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”

तभी चौथी मोमबत्ती बोली, “प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं।”

यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।

मित्रों, जब सबकुछ बुरा होते दिखे,चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये, अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई चीज आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये, बस अगर ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।

गुरु-शिष्य की कहानी : जल की मिठास

untitled-2.jpg

गर्मियों के दिनों में एक शिष्य अपने गुरु से सप्ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया।

शिष्य प्यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। शिष्य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्योंकि कुएं का जल बेहद मीठा और ठंडा था।

शिष्य ने सोचा – क्यों ना यहां का जल गुरुजी के लिए भी ले चलूं। उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई।गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और संतुष्टि महसूस की।

उन्होंने शिष्य से कहा- वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्य को खुशी हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।

कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया।

शिष्य बोला- गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने बेकार ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की।

कहानी की सीख –

दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्छाई खोजी जा सकती है।

गुरुजी बोले- बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पिया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा। यही बात महत्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा।

पर मैं यह कहकर उसका मन दुखी करना नहीं चाहता था। हो सकता है जब जल मशक में भरा गया, तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते यह जल वैसा नहीं रहा, पर इससे लाने वाले के मन का प्रेम तो कम नहीं होता है ना।

कहानी की सीख – दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्छाई खोजी जा सकती है।

गुरु जी की सीख (शिक्षा)

teacher.jpg

बहुत समय पहले की बात है. एक बार एक गुरु जी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे।
तभी एक राहगीर आया और उनसे पूछा, “महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ ?”

गुरु जी बोले, “जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?”
“मत पूछिए महाराज , वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं।”, राहगीर बोला।

गुरु जी बोले, “इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया।

कुछ समय बाद एक दूसरा राहगीर वहां से गुजरा। उसने भी गुरु जी से वही प्रश्न पूछा, “मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?”

“जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?” गुरु जी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा.

“जी वहां तो बड़े सभ्य , सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं।”राहगीर बोला.

“तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे…सभ्य, सुलझे और अच्छे ….”, गुरु जी ने अपनी बात पूर्ण की और दैनिक कार्यों में लग गए. पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे और राहगीर के जाते ही एक शिष्य ने कहा, “गुरु जी ने झूठ बोला है! गुरु जी ने  दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें बताई हैं।”

गुरु जी गंभीरता से बोले, “शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते जैसी वे हैं, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं जैसे कि हम खुद हैं। हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं।”

शिष्य उनके बात समझ चुके थे और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया.

 

Admin: Shaneel

हनुमान जयंती : मंगल को जन्मे मंगल ही करते मंगलमय भगवान

hanuman_playing.png
कहते है पवनपुत्र हनुमान जैसा कोई नहीं, भक्त तो कई है लेकिन जो बात रूद्र अवतार हनुमान जी में हैं वो किसी में नहीं। आज हनुमान जंयती है। कहते हैं आज ही अंजनी पुत्र हनुमान जी का जन्म दिन है। कहते हैं देवताओं के राजा इंद्र ने भक्त हनुमान पर वज्र से प्रहार किया था जिसके चलते हनुमान की ठुड्डी टूट गई थी जिसके कारण उन्हें हनुमान कहा जाता है। आपको पता है कि हनुमान जी हमेशा लाल रंग में ही क्यों दिखायी देते हैं? एक बार बचपन में हनुमान जी ने अपनी मां को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखकर पूछा तो उनकी मां ने कहा कि वो अपने प्रभु यानी अपने पति को खुश करने और उनकी लंबी आयु के लिए अपनी मांग में सिंदूर लगाती है, इसलिए हनुमान जी ने सोचा कि जब चुटकी भर सिंदूर से ही मां के भगवान प्रसन्न हो सकते हैं तो मैं अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लगा लेता हूं, तभी से हनुमान जी हमेशा लाल सिंदूर में रंगे हुए दिखायी देते हैं। हनुमानजी बुद्धि और बल के दाता हैं। उत्तरकांड में भगवान राम ने हनुमानजी को प्रज्ञा, धीर, वीर, राजनीति में निपुण आदि विशेषणों से संबोधित किया है। हनुमानजी बल और बुद्धि से संपन्न हैं। हनुमान को मनोकामना पूर्ण करने वाला देवता माना जाता है, इसलिए मन्नत मानने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमान की मूर्ति की श्रद्धापूर्वक निर्धारित प्रदक्षिणा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्या का विवाह न तय हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमान की उपासना करने को कहा जाता है। चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। प्राय: शनिवार व मंगलवार हनुमान के दिन माने जाते हैं। इस दिन हनुमानजी की प्रतिमा को सिंदूर व तेल अर्पण करने की प्रथा है। कुछ जगह तो नारियल चढाने का भी रिवाज है।

हनुमान जी को सिन्दूर क्यों पसंद है?

Lord-Hanuman-Statue-at-Govardhan.jpg

एक बार माता सीता, अपने मांग में सिन्दूर लगा रही थीं, उनके पास में ही बैठे हनुमान जी उन्हें सिंदूर लगाते हुए देख रहे थे, उन्होंने सीता माता से पुछा-“ माते आपको हर रोज हम इसी तरह सिन्दूर लगाते हुए देखते हैं, मांग में सिन्दूर लगाने से क्या आशय है?”

 

सीता माता ने कहा-“ हनुमान, मैं अपने पति श्रीराम के नाम की सिन्दूर अपने मांग में लगाती हूँ ताकि उनकी उम्र बहुत लंबी हो.”

हनुमान जी सोच में पड़ गए और उन्होंने फ़ौरन ही एक थाल सिन्दूर लिया और अपने शरीर पर लगा लिया. उनका पूरा शरीर लाल सिन्दूर के रंग में रंग चूका था.
सीता माता यह सब देखकर हंसते हुए बोलीं- हनुमान इसका क्या अभिप्राय है?
हनुमान जी ने उत्तर दिया – “माते, मैंने भी श्रीराम के नाम का सिन्दूर पूरे शरीर भर में लगाया है ताकि उनकी असीम कृपा मुझ पर हमेशा बनी रहे और मेरे प्रभु, मेरे आराध्य की उम्र इतनी लंबी हो कि मेरा सम्पूर्ण जीवन उनकी सेवा में ही बीते.”

हनुमान जी के इन वचनों को सुनकर माता सीता का ह्रदय गद्गद् हो उठा !

 

हनुमान की कृपा से तुलिसदस जी को राम का दर्शन पाना।

hanuman-Tulasidasji.jpg

एक समय की बात है, तुलसीदास जी हर सुबह उठ कर गंगा नदी में जा कर नमस्कार करता था। जब वह वापस लौटता था तोह अपने एक लोटे में गंगा का जल भर कर उसे एक पेड़ के नीचे दाल देता था। वे हर सुबह यह करता था। उसी पेड़ पर एक भूत रहता था। भूत को गंगा जल मिल जाती थी और वह उसी में खुश रहता था। एक दिन वह भूत खुश हो कर तुलसीदास जी के सामने आ खड़े हो जाते है और कहते है की उनसे कोई वर मांग ले। तुलसीदास जी तुरंत कहते है की मुझे श्री राम का दर्शन करा दो। यह बात सुनकर भूत कहता है की मैं तोह एक छोटा सा भूत हूँ जो इस छोटे से पेड़ पर रहता हूँ। मेरी क्या औकाद की मैं आपको श्री राम का दर्शन करदूं. अगर मैं एसा कर सकता तोह क्या मैं अभी इस अवस्था में रहता? यह बात कहकर फिर वह भूत बोलता है की मैं भेट करा तोह नहीं सकता परन्तु एक उपाए अवश्य दे सकता हूँ। तब वो भूत तुलसीदास को एक मंदिर की और इशारा करते हुए कहता है की तुम वह पर जाओ। वहां पर हर शाम रामायण की कथा होती है. वही पर तुम्हे एक बहुत ही रोगी बूढा व्यक्ति मिलेगा। तुम उनसे विनती करना और उनके पैर पकड़ कर उनके सामने गिड़गिड़ाना तभी वह तुम्हे श्री राम के दर्शन का कोई मार्ग दर्शन कराएँगे।

तुलसीदास जी अब उस भूत की बातें सुन कर चल पड़ते है. उसी शाम को वह उस मंदिर में चले जाते है और उस रोगी बूढ़े व्यक्ति का मार्ग देखते है। जब वह व्यक्ति आ जाते हैतब तुलसीदास जी उनके पैर पकड़ लेते है और बारम्बार बिनती करते है। अंत में जब हनुमान कोई सुझाव नहीं निकाल पते तोह तुलिसदस को अपना असली रूप दिखाते है और उन्हें श्री राम जी से मिलवाने का वाद भी करते है।