नवधा भक्ति

श्रीराम जी ने शबरी को नवधा भक्ति के बारे में ज्ञान दिया था। अवधी भाषा में (रामचरितमानस से)

Ram-738

नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।दुसरि रति मम कथा प्रसंगा॥

श्री राम जी कहते है शबरी से कि अब मैं तुम्हे नवधा भक्ति की जो ज्ञान है उसे सुनाने जा रहा हूँ। तुम उसे बड़े ध्यान से सुनो। पहला भक्ति यही कहलाती है कि संतो कि संगत करनी चाहिए। दूसरी भक्ति है कि मेरे कथाओं और भजन में मग्न रहना और उसी में लीन हो जाना।

गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥

बिना किसी बात के गर्व करते हुए अपने गुरु कि निरन्तर सेवा करना तीसरी भक्ति है। चौथी भक्ति है कि मन से कपड निकाल कर मेरे ही गुण समूह का गान करो।

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

अपने ह्रदय में विश्वास के साथ मेरे नाम का निरतर जाप करना वेदो के अनुसार पांचवी भक्ति है। छटी भक्ति है कि गुन गतिविधियों से आत्म नियंत्रण, अच्छे चरित्र , सेना की टुकड़ी का अभ्यास और हमेशा अच्छा धार्मिक व्यक्ति के रूप में कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुं नहिं देखइ परदोषा॥

सातवीं भक्ति है कि पूरी दुनिया को भगवान् के रूप में देखना चाहिए और संत जनो को भगवन से ऊपर का पद देना चाहिए। आठवीं भक्ति है कि जिन मिले उतना में ही संतुष्ट हो जाना। सभी इक्छा का कामना छोड़ कर सपने में भी किसी का बुरा मत सोचना।

नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना॥

नवम भक्ति है कि एक छोटे बच्चे कि तरह बन कर अपने आप को पूरी तरह भगवन को सौप दे और अपना हर कार्य और जीवन चलने का बिनती भगवन से करे। जब पूरे जगत के रचेता तुम्हारा जीवन चलाएंगे तोह भला कोई बुरा जीवन में कभी आ सकता है?

नव महुं एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरूष सचराचर कोई॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनी मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥

श्री रामचन्द्र जी महतपस्विनि माता शबरी से कहते है कि इन भक्तियो में से एक भी किसी के पास हो तोह वह प्राणी मुझे बहोत प्रिये है और तुझ में तोह यह सभी भक्ति है। तुम धन्य हो माता तुम धन्य हो।

Leave a comment