हनुमान की कृपा से तुलिसदस जी को राम का दर्शन पाना।

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एक समय की बात है, तुलसीदास जी हर सुबह उठ कर गंगा नदी में जा कर नमस्कार करता था। जब वह वापस लौटता था तोह अपने एक लोटे में गंगा का जल भर कर उसे एक पेड़ के नीचे दाल देता था। वे हर सुबह यह करता था। उसी पेड़ पर एक भूत रहता था। भूत को गंगा जल मिल जाती थी और वह उसी में खुश रहता था। एक दिन वह भूत खुश हो कर तुलसीदास जी के सामने आ खड़े हो जाते है और कहते है की उनसे कोई वर मांग ले। तुलसीदास जी तुरंत कहते है की मुझे श्री राम का दर्शन करा दो। यह बात सुनकर भूत कहता है की मैं तोह एक छोटा सा भूत हूँ जो इस छोटे से पेड़ पर रहता हूँ। मेरी क्या औकाद की मैं आपको श्री राम का दर्शन करदूं. अगर मैं एसा कर सकता तोह क्या मैं अभी इस अवस्था में रहता? यह बात कहकर फिर वह भूत बोलता है की मैं भेट करा तोह नहीं सकता परन्तु एक उपाए अवश्य दे सकता हूँ। तब वो भूत तुलसीदास को एक मंदिर की और इशारा करते हुए कहता है की तुम वह पर जाओ। वहां पर हर शाम रामायण की कथा होती है. वही पर तुम्हे एक बहुत ही रोगी बूढा व्यक्ति मिलेगा। तुम उनसे विनती करना और उनके पैर पकड़ कर उनके सामने गिड़गिड़ाना तभी वह तुम्हे श्री राम के दर्शन का कोई मार्ग दर्शन कराएँगे।

तुलसीदास जी अब उस भूत की बातें सुन कर चल पड़ते है. उसी शाम को वह उस मंदिर में चले जाते है और उस रोगी बूढ़े व्यक्ति का मार्ग देखते है। जब वह व्यक्ति आ जाते हैतब तुलसीदास जी उनके पैर पकड़ लेते है और बारम्बार बिनती करते है। अंत में जब हनुमान कोई सुझाव नहीं निकाल पते तोह तुलिसदस को अपना असली रूप दिखाते है और उन्हें श्री राम जी से मिलवाने का वाद भी करते है।

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