हनुमान जी का पूजन मंगलवार को क्यूँ किया जाता हैं?

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एक समय कि बात है जब हनुमान बाल अवस्था मे थे और उन्की माँ अंजना उन्हे सुर्य देव के पास शिक्शा ग्रहन करन॓ के लिये भेजे। जब हनुमान कि शिक्शा सम्पुर्न हो गई तब वो वापस अपनी माँ के पास चले गए। माँ अंजना फिर हनुमान से पुछ्ती है कि उन्होने अपन॓ गुरु को गुरुदक्शिना मे क्या भेट किया। तभी हनुमान अपनी माँ से पुछ्ता है कि यह गुरुदक्शिन क्या होता है। माँ अंजना समझाती हुई बतलाती हैं कि एक शिश्य का कर्तव्य बनता हैं कि वो अपन॓ गुरु को शिक्श सम्पुर्न होने पर कुछ भेट करे।
यह बात सुन कर हनुमान जी और विलम्ब न करते हुये उड पडते है अपने गुरु सुर्य देव कि ओर। सुर्य देव जब हनुमान को अपनी ओर आता देखता हैं तो समझ जाते हैं कि वे किस कारन वश आ रहे है।
हनुमान पहुछ्ने पर अपने गुरु को प्रनाम करते हुये पुचते है कि गुरु देव मैं आपको गुरुदक्शिन मे क्या भेट करू? सुर्य देव यह वाणी सुन्ते हि हनुमान को सीने से लगा लेते है और आगे केहते है कि, “हे पवन कुमार्। यदि तुम मुझे गुरुदक्शिना मे कुछ भेट करना ही छह्ते हो तो मेरे एक कर्य करो. जाओ मेरे पुत्र शनि को मेरे पास ले आओ। वो मुझसे रूटा रहता हैं। जाओ उसे मुझसे एक बार मिला दो।”
हनुमान अपनी गुरु कि आज्ञा ले कर उड पडते हैं और रास्ते मे उसे मंगल मिलते हैं। मंगल हनुमान कि राह रोकते हुए उनसे केहते हैं, “काैन हो तुम? इस तरह उड कर कहा जा रहे हो, बालक?” हनुमान फिर मंगल को पूरी बात बतलाते हैं।
जब मंगल हनुमान कि बाते सुनते है तब सोछ्ते हैं कि शनि और उन्के पिता सुर्य के बीच बाते नही हैं। मंगल हनुमान को वापस जाने के लिये कहता है परंतू हनुमान हट कर जाते है और फिर दोनो के बीच धमासान युध होता है. युध लगभग तीन दिनो तक चलती रही. जब मंगल को यह एह्सास होता है कि अब वो बालक से नही जीत सकते तब हार मान कर हनुमान से केह्ते है, “हे बालक, तुम अवश्य कोइ दीव्य शक्ति हो। मै तुम्हे वर्दान देता हूँ कि आज से मेरा दिन तुहारा हैं और जो भी मंगलवार को तुम्हारा पूजन करेगा उसका पूजन हुमेशा सफ़ल रहेगा।”

इसि प्रकार हनुमान जी का पूजन हुमेशा मंगलवार को किया जाता हैं।

Source: Bhagirathi Bhan (Hanuman Jyanti 2015)

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